जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024: एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत
जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024: एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत
By: Yogesh kumar Gulati
2024 का विधानसभा चुनाव जम्मू और कश्मीर के लिए केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह उस संघर्ष और परिवर्तन का प्रतीक है, जो इस क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों में देखा है। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद यह पहला चुनाव है, जो न केवल राज्य के राजनीतिक भविष्य को आकार देगा, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डालेगा। यह चुनाव एक अनूठी कहानी कहता है—कश्मीर की पहचान, उसकी राजनीतिक दिशा, और उन मुद्दों का जो राज्य की जनता की उम्मीदों और निराशाओं से जुड़े हैं।
बदलती राजनीति: संघर्ष, आकांक्षाएं और उम्मीदें
2019 में जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया, तब कई लोगों ने इसे "कश्मीर की पहचान पर हमला" कहा, तो कुछ ने इसे "विकास के नए युग" की शुरुआत बताया। "यह कश्मीर के भविष्य की कुंजी है," बीजेपी नेता अक्सर यह कहते आए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या कश्मीर की जनता इस "नई दिशा" को स्वीकार करेगी या पुरानी पहचान को बहाल करने की लड़ाई जारी रखेगी?
बीजेपी की रणनीति इस बार स्पष्ट है: "विकास, शांति और सुरक्षा।" केंद्र की योजनाओं और विकास परियोजनाओं को भाजपा के नेता "नई कश्मीर" की नींव बता रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार, "कश्मीर अब विकास और रोजगार की नई ऊंचाइयों को छुएगा, जहाँ युवा पत्थर नहीं बल्कि लैपटॉप उठाएंगे।" लेकिन सवाल यह भी है कि क्या घाटी की जनता इस नई राह पर चलने को तैयार है?
मुद्दे जो दिशा तय करेंगे
इस चुनाव के केंद्र में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो किसी भी राजनीतिक पार्टी की जीत या हार तय करेंगे। पहला और सबसे बड़ा मुद्दा है राज्य का दर्जा बहाल करना। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) इस मांग को चुनावी मंच पर प्रमुखता से उठा रहे हैं। "कश्मीर को उसका हक लौटाना हमारी प्राथमिकता है," कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में एक रैली में कहा था। वहीं, बीजेपी राज्य का दर्जा बहाल करने के बजाय विकास पर फोकस कर रही है।
दूसरा प्रमुख मुद्दा है बेरोजगारी। धारा 370 के निरस्त होने के बाद से घाटी में व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में स्थिरता नहीं आई है। स्थानीय व्यापारियों के लिए बाहरी ठेकेदारों को मिले प्रोजेक्ट्स एक प्रमुख चिंता का विषय बने हुए हैं। तीसरा बड़ा मुद्दा है सुरक्षा। आतंकवाद से निपटने के लिए सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों का समर्थन बीजेपी को जम्मू क्षेत्र में मजबूती देता है, लेकिन घाटी में इसका उल्टा प्रभाव भी पड़ सकता है।
बीजेपी की चुनौती: घाटी में पैर जमाना
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती घाटी में समर्थन हासिल करना है। जम्मू क्षेत्र में पार्टी की पकड़ मजबूत है, लेकिन घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का प्रभाव अब भी कायम है। यहां की जनता की भावनाएं अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से बीजेपी के खिलाफ रही हैं। बीजेपी नेताओं के लिए यह चुनाव "विकास बनाम पहचान" की लड़ाई बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर कहते हैं, "हम कश्मीर को विकास के पथ पर ले जाएंगे, जहाँ हर कश्मीरी को गरिमा और रोजगार मिलेगा।"
लेकिन घाटी में यह संदेश कितना गूंजेगा, यह देखने वाली बात होगी। स्थानीय दलों की मजबूत उपस्थिति और उनके क्षेत्रीय मुद्दों पर फोकस ने बीजेपी के लिए मुकाबले को कठिन बना दिया है। सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अल्ताफ बुखारी की आपनी पार्टी भी राज्य का दर्जा बहाल करने और स्थानीय अधिकारों की मांग पर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के सामने चुनौती यह है कि वह घाटी के मतदाताओं का विश्वास कैसे जीतेगी।
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की रणनीति
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन इस चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस घाटी में अपनी पकड़ मजबूत रखने की कोशिश कर रही है, जबकि राहुल गांधी ने राज्य के दौरे पर कहा, "यह चुनाव कश्मीर की पहचान और आत्मसम्मान की लड़ाई है।" कांग्रेस और एनसी दोनों ने राज्य का दर्जा बहाल करने, बेरोजगारी, और स्थानीय स्वायत्तता के मुद्दों को अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से रखा है।
क्षेत्रीय दल: किंगमेकर या चुनौती?
सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (DPAP) इस बार चुनावी मैदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। सज्जाद लोन की पार्टी ने हाल के चुनावों में घाटी में अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि गुलाम नबी आजाद अपनी पार्टी के साथ कश्मीर घाटी के महत्वपूर्ण मुद्दों पर लड़ाई लड़ रहे हैं। इनके अलावा, अल्ताफ बुखारी की आपनी पार्टी और छोटे क्षेत्रीय दल भी कुछ सीटों पर प्रभाव डाल सकते हैं।
अनुच्छेद 370 के बाद का परिदृश्य: एक नई सुबह या नई चुनौती?
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद राज्य की राजनीति और प्रशासनिक ढांचे में कई बदलाव आए हैं। जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद राज्य को केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया। इस कदम को बीजेपी ने "राष्ट्र की अखंडता" के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या इससे कश्मीर की जनता का दिल जीतने में सफलता मिली है?
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति और विकास की गति के सवाल लगातार उठते रहे हैं। बीजेपी सरकार ने कई योजनाओं का आगाज किया है, लेकिन आतंकवाद की समस्या अब भी कायम है। वहीं, कश्मीर घाटी में राजनीतिक अस्थिरता और असंतोष के कारण स्थिति और जटिल हो गई है।
निष्कर्ष: कौन बनेगा कश्मीर का भविष्य?
2024 का यह चुनाव केवल सीटों का नहीं, बल्कि कश्मीर के भविष्य का चुनाव है। यह चुनाव तय करेगा कि क्या कश्मीर की जनता बीजेपी के विकास मॉडल को स्वीकार करती है या पहचान और राज्य की स्वायत्तता के मुद्दों पर कांग्रेस और एनसी को समर्थन देती है। "यह कश्मीर का नया अध्याय है," लेकिन यह देखना बाकी है कि कश्मीर की जनता इस अध्याय को कैसे लिखती है।
कश्मीर का राजनीतिक भविष्य इस चुनाव के परिणाम पर निर्भर करेगा, और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन से मुद्दे और कौन सी पार्टी इस चुनावी महासंग्राम में विजयी होती है।
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