ड्रेगन पर भारी मोदी नीति, चालाक चीन ने कदम पीछे क्यों किए?

By: Yogesh kumar Gulati 

चालाक चीन ने कदम पीछे क्यों किए?

दुनिया की सबसे लंबी और सबसे विवादित सीमाओं में से एक, भारत-चीन सीमा पर हाल ही में एक दिलचस्प मोड़ आया है। जिस चीन ने लद्दाख की गलवान घाटी में आक्रामकता दिखाई थी, वही अब पीछे हटता दिख रहा है। यह कोई अचानक चमत्कार नहीं है, बल्कि एक गहन रणनीतिक खेल का हिस्सा है, जिसमें भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल की पुतिन से मुलाकात और भारत की कूटनीतिक महारत का हाथ है।

पुतिन और डोभाल: भू-राजनीति की गुप्त रणनीति

अजीत डोभाल का रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलना केवल औपचारिकता नहीं थी। यह बैठक एक कूटनीतिक चाल थी, जो चीन के खिलाफ भारत के रणनीतिक कदमों को और मजबूत करने के लिए थी। रूस इस समय पश्चिमी प्रतिबंधों से घिरा हुआ है और चीन के साथ उसके संबंधों की मजबूती के बावजूद, भारत के साथ उसकी गहरी मित्रता ने उसे एक निर्णायक भूमिका में ला खड़ा किया है। डोभाल ने पुतिन के साथ मिलकर एक ऐसा माहौल बनाया जहां चीन पर सीमा विवाद सुलझाने का दबाव बढ़ गया। इससे चीन के पास पीछे हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।

चीन का रुख: क्या दबाव में आया ड्रैगन?

चीन ने हाल ही में संकेत दिए हैं कि वह सीमा पर अपने कदम वापस खींचने को तैयार है। लेकिन सवाल उठता है, ऐसा क्यों? दरअसल, भारत और चीन के बीच लगातार कूटनीतिक वार्ता होती रही है। अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई हालिया मुलाकात में दोनों पक्षों ने सीमा पर शांति और स्थिरता की आवश्यकता पर जोर दिय। डोभाल ने स्पष्ट किया कि बिना शांति के द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाना असंभव है। चीन, जो लगातार आंतरिक और वैश्विक दबावों का सामना कर रहा है, को यह समझ में आ गया कि भारत के साथ टकराव से उसका हित नहीं सधने वाला।

मोदी फैक्टर: कूटनीति का नया युग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व भारत की विदेश नीति में एक नए युग का प्रतीक है। मोदी सरकार की विदेश नीति में न केवल सामरिक संबंधों को बढ़ावा दिया गया है, बल्कि देश की सीमाओं की रक्षा करने का संकल्प भी दिखा है। भारत ने रूस के साथ अपनी ऐतिहासिक साझेदारी को बनाए रखा है, जबकि अमेरिका और जापान जैसे देशों के साथ भी अपने संबंधों को और प्रगाढ़ किया है। मोदी की 'सभी के साथ मित्रता, पर कोई समझौता नहीं' की नीति ने चीन को यह सोचने पर मजबूर किया कि वह भारत के साथ कब और कैसे आगे बढ़े। चीन को यह स्पष्ट संकेत मिल गया कि भारत अब वह देश नहीं है जिसे आसानी से दबाया जा सके।

चीन का पीछे हटना: क्या यह अंतिम समाधान है?

हालांकि चीन का पीछे हटना एक सकारात्मक संकेत है, परंतु यह अंतिम समाधान नहीं है। चीन की आक्रामक रणनीति और उसकी आर्थिक तथा सामरिक महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि सीमा पर शांति को बनाए रखने के लिए भारत को सतर्क रहना होगा। अजीत डोभाल की यह चाल महज एक शुरुआत है; भविष्य में भी भारत को अपनी सामरिक क्षमता को मजबूत बनाए रखना होगा ताकि चीन दोबारा किसी तरह की दुस्साहसिक कार्रवाई न कर सके।

निष्कर्ष: भारत की कूटनीतिक विजय 

अजीत डोभाल की पुतिन और वांग यी से हुई मुलाकातें भारत की कूटनीतिक जीत का प्रतीक हैं। यह दिखाता है कि आज का भारत केवल अपनी सीमाओं की रक्षा में सक्षम नहीं है, बल्कि विश्व मंच पर भी अपनी शर्तों पर बातचीत कर सकता है। डोभाल की इस रणनीति ने साबित कर दिया है कि चीन जैसे देशों के साथ भी बातचीत के जरिए परिणाम हासिल किए जा सकते हैं, बशर्ते देश की नीति स्पष्ट और मजबूत हो।

यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में चीन और भारत के बीच के रिश्ते किस दिशा में जाते हैं, लेकिन फिलहाल, यह स्पष्ट है कि भारत की कूटनीति ने एक और महत्वपूर्ण जीत हासिल की है।


Ajit Doval Putin meeting

India-China border dispute 2024

China retreats from India border

Ajit Doval's strategy on China

Putin-Doval meeting impact on China

India-China relations analysis

Modi's foreign policy on China

China changes stance on India

India-China border tension 2024

Modi government and China

India-Russia relations in geopolitics

Ajit Doval meets Chinese officials

Strategic meeting between Doval and Putin

Modi and China strategy

India-China LAC conflict resolution

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मोहम्मद यूनुस ने ऐसे किया बांग्लादेश का 'बेड़ा गर्क'

विदेशी धरती पर राहुल की महाभारत का मकसद क्या?

शीला दीक्षित के बाद आतिशी....