कहानी केजरीवाल की...

भारतीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का उदय और पतन

By,: Yogesh kumar Gulati 

साल 2011, जब भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाजें बुलंद हो रही थीं, तब अरविंद केजरीवाल का नाम एक ऐसे नेता के रूप में उभरा, जो व्यवस्था को बदलने की बात कर रहे थे। अन्ना हजारे के नेतृत्व में चल रहे जनलोकपाल आंदोलन के दौरान, केजरीवाल ने राजनीति को एक नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। इसी आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी (AAP) ने जनता के बीच एक नई उम्मीद जगाई थी, लेकिन समय के साथ वही पार्टी आज खुद चुनौतियों से जूझ रही है। 

अरविंद केजरीवाल का राजनीति में प्रवेश

अरविंद केजरीवाल ने भारतीय राजनीति में अपनी शुरुआत एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में की। पहले भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में कार्यरत केजरीवाल ने सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया। जब अन्ना हजारे ने 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल आंदोलन छेड़ा, तब केजरीवाल उनके साथ सबसे आगे खड़े थे। इस आंदोलन ने न केवल जनता का ध्यान खींचा, बल्कि पूरे देश में एक नई राजनीति की जरूरत का एहसास भी कराया।


AAP का गठन

26 नवंबर 2012 को अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी की स्थापना की। पार्टी का लक्ष्य पारंपरिक राजनीति से अलग एक स्वच्छ और पारदर्शी राजनीतिक व्यवस्था बनाना था। AAP ने खुद को "आम आदमी" की पार्टी के रूप में पेश किया, जो भ्रष्टाचार से मुक्त और जनहितैषी शासन देने का वादा करती थी।

2013 का दिल्ली चुनाव: उम्मीदों की पहली जीत

2013 का दिल्ली विधानसभा चुनाव AAP के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। पहली बार चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी ने 28 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया। इस चुनाव परिणाम ने अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बना दिया, हालांकि उनकी सरकार केवल 49 दिनों तक ही चल पाई। इस अल्पकालिक कार्यकाल के बाद भी, केजरीवाल का इस्तीफा उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित करने में सहायक बना।

2015 का प्रचंड बहुमत: AAP का स्वर्ण काल

2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP ने भारतीय राजनीति में इतिहास रच दिया। पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतकर भारतीय राजनीति में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की। बीजेपी और कांग्रेस जैसे दिग्गज दलों को बहुत कम सीटों पर संतोष करना पड़ा। यह जीत न केवल अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व का प्रमाण थी, बल्कि AAP के शासन मॉडल की लोकप्रियता को भी दर्शाती थी।

इस समय पार्टी ने शिक्षा, स्वास्थ्य, जल आपूर्ति और बिजली के क्षेत्र में कई बड़े फैसले लिए। मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी स्कूलों में सुधार जैसे कदम जनता के बीच काफी लोकप्रिय हुए।

विवाद और चुनौतियाँ

लेकिन, सफलता के साथ-साथ विवाद भी बढ़ने लगे। पार्टी के भीतर आंतरिक कलह ने AAP की छवि को नुकसान पहुँचाया। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे बड़े नेताओं का पार्टी से बाहर होना यह दिखाता है कि पार्टी के अंदर मतभेदों को सही तरीके से संभालने में असमर्थता थी। इसके अलावा, पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगने शुरू हो गए, जो कि इसके शुरुआती दिनों के आदर्शों के खिलाफ थे।

राष्ट्रीय राजनीति में असफलता

AAP ने दिल्ली की सफलता के बाद राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने का प्रयास किया, लेकिन यह प्रयास असफल रहा। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ 4 सीटें मिलीं। इसके बाद, 2019 के चुनाव में भी पार्टी को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली। पार्टी ने पंजाब और गोवा में भी चुनाव लड़ा, लेकिन केवल पंजाब में ही थोड़ी बहुत सफलता हासिल कर पाई।

दिल्ली के बाहर AAP का संगठन कमजोर रहा, जिससे पार्टी अन्य राज्यों में अपनी पकड़ बनाने में असफल रही। इसके अलावा, केजरीवाल की बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ लगातार विरोध ने कई मतदाताओं के बीच उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया।

पंजाब में जीत और राष्ट्रीय विस्तार की विफलता

2022 में AAP ने पंजाब विधानसभा चुनाव में 92 सीटें जीतकर अपनी स्थिति मजबूत की, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का प्रदर्शन अब भी निराशाजनक रहा। पार्टी ने उत्तराखंड, गोवा और उत्तर प्रदेश में भी चुनाव लड़ा, लेकिन कोई खास सफलता हासिल नहीं कर पाई।

AAP का पतन: कारणों का विश्लेषण

आंतरिक कलह: योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे प्रमुख नेताओं का पार्टी छोड़ना AAP की अंदरूनी कमजोरियों का संकेत है। आंतरिक लोकतंत्र की कमी पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरियों में से एक साबित हुई है।

संगठनात्मक कमजोरी: AAP का संगठन अन्य राष्ट्रीय दलों की तुलना में काफी कमजोर रहा। दिल्ली के बाहर पार्टी का ढांचा स्थापित करने में केजरीवाल और उनकी टीम नाकाम रही।

विवाद और आरोप: पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप और विवादों में घिरना उसकी भ्रष्टाचार विरोधी छवि को नुकसान पहुंचाने वाला साबित हुआ। पार्टी के कुछ नेताओं पर गंभीर आरोप लगे, जिससे जनता का भरोसा डगमगा गया।


राष्ट्रीय राजनीति में विफलता: AAP ने दिल्ली में तो एक मजबूत स्थिति बनाई, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में पार्टी का कोई खास प्रभाव नहीं दिखा। पार्टी का दिल्ली केंद्रित होना और अन्य राज्यों में संगठन खड़ा न कर पाना उसकी सबसे बड़ी कमजोरी रही।

अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने भारतीय राजनीति में एक नई दिशा देने का प्रयास किया था। शुरुआत में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और दिल्ली की जीत ने पार्टी को एक नई ऊंचाई तक पहुँचाया। लेकिन समय के साथ आंतरिक कलह, संगठनात्मक कमजोरी और राष्ट्रीय राजनीति में विफलता के कारण AAP का पतन शुरू हो गया।

आज AAP दिल्ली और पंजाब में शासन कर रही है, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में उसकी स्थिति कमजोर है। अगर पार्टी अपनी आंतरिक कमजोरियों को सुधारने और राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी राजनीति करने के प्रयास नहीं करती है, तो यह संभव है कि AAP का भविष्य अंधकारमय हो।

भारतीय राजनीति में एक स्थायी बदलाव लाने का सपना लेकर आई यह पार्टी आज खुद अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। AAP का सफर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक अनुभव के रूप में याद किया जाएगा, जिसने हमें दिखाया कि राजनीति में वैकल्पिक मॉडल तैयार करना आसान नहीं होता, और लंबे समय तक जनता का भरोसा बनाए रखना उससे भी कठिन है।

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