विदेशी धरती पर राहुल की महाभारत का मकसद क्या?
अमरीका में राहुल के बयानों से भारत में क्यों मचा संग्राम?
By: Yogesh kumar Gulati
घर के मुद्दे अगर दूर के रिश्तेदार या किसी पड़ोसी को बताओगे तो इस बात की संभावना बहुत कम है कि वो आपके मुद्दे सुलझाएगा, बल्कि इस बात की संभावना कहीं अधिक है कि, वो आपके अंदरूनी राज जानकर अपने हित में उनका इस्तेमाल करेगा। उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर पेश करेगा और आपकी छबि को नुकसान पहुंचाएगा।लेकिन ये बात ना तो राहुल गांधी को समझ आती है, ना देश की सबसे वरिष्ठ कांग्रेस पार्टी को ।
यहां मै इस बात को सिरे से नहीं नकारूंगा कि भारत में किसी पर भी, और कहीं भी, कोई भी अन्याय नहीं हो रहा। सब कुछ ठीक है और अच्छा चल रहा है। नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है। आज भी वैसे ही अत्याचार हो रहे हैं जैसे 2014 से पहले हो रहे थे। बहस इस बात पर हो सकती है कि आज अत्याचार और अन्याय 2014 की तुलना में कम हुआ है या बढ़ा है। लेकिन इसपर कोई बहस नहीं हो सकती कि देश में अन्याय और अत्याचार पूरी तरह समाप्त हो गए हैं। आज भी दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं तो सवर्ण भी घृणा के शिकार बनाए जा रहे हैं। मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है तो गणपति उत्सव और दुर्गा पूजा जैसे उत्सवों पर पथराव कर हिंदुओं को भी प्रताड़ित किया जा रहा है। मणिपुर हो या बंगाल, महिलाओं के खिलाफ अपराध नहीं रुके हैं तो बच्चे और बूढ़े भी असुरक्षित हैं। लेकिन सवाल ये है कि जब देश का संविधान आपको ये अधिकार देता है कि आप लोकतंत्र की मर्यादा में रहकर देश में अपनी बात रख सकते हैं। आप संसद से सड़क तक सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकते हैं, तो फिर भला आपको बार बार यूरोप और अमेरिका जाने की जरूरत ही क्यों पड़ती है? क्यों आप वहां ऐसे कट्टरपंथी तत्वों से मिलते हैं जो भारत से शत्रुता रखते हैं। और जब ऐसे तत्व आपके बयानों पर तालियां पीटकर खुशी जताते हैं तो इससे आपको प्रसन्न होना चाहिए या परेशान?
अमरीका में चुनाव के बीच राहुल गांधी की अमरीका यात्रा और अमरीका की धरती पर भारत की अंदरूनी राजनीति पर बहस ने एक बार फिर देश की राजनीति में भूचाल ला दिया है। जैसे जैसे राहुल गांधी के बयान सामने आ रहे हैं वैसे वैसे भारत में पक्ष और विपक्ष के बीच जंग बढ़ती जा रही है। बीजेपी का पारा चढ़ाने और बीजेपी को चिढ़ाने की कांग्रेस की ये रणनीति नई नहीं है।
राहुल की विदेश यात्राओं में पहले भी यही सब होता आया हैं। जब भी राहुल विदेश की धरती से कोई संबोधन देते हैं या विदेशी मीडिया को कोई इंटरव्यू देते हैं तो वो वहां के मीडिया को सुर्खियां देने की पूरी कोशिश करते हैं। वो विदेशी मीडिया को वही बताते हैं जो वेस्ट का मीडिया सुनना चाहता है। जिसे वो मसाला लगाकर अपने दर्शकों और पाठकों को परोस सके। इसमें प्रमुख हैं भारत में लोकतंत्र खतरे में है, भारत में मुस्लिमों पर अत्याचार हों रहे हैं, भारत में सिखों की पगड़ी पर खतरा मंडरा रहा है। कुल मिलाकर सार ये है कि वेस्ट में लोग जो ये समझने लगे हैं कि भारत अब सपेरों और झुग्गी बस्तियों वाला गरीब देश नहीं रहा, बल्कि वो आईटी हब, बिजनेस हब, दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था और महाशक्ति बन गया है। इस नेरेटिव को ध्वस्त करने की कोशिश वेस्ट का मीडिया करता रहता है। और जब ये बात जब वहां जाकर खुद राहुल गांधी कहते हैं साथ में रोज़गार, किसान और अर्थव्यवस्था की बदहाली का राग भी छेड़ आते हैं, तो अब भला पश्चिमी मीडिया इस सुनहरे मौके को कैसे छोड़ सकता है। वो महीनों तक राग दरबारी को बजाता रहता है। हेडलाइन में चलता है, इसपर वामपंथी विद्वानों से आर्टिकल लिखवाता है। कुल मिलाकर भारत की छबि को इतना नुकसान तो पहुंचा ही देता है कि पश्चिम के उद्योगपतियों के हित सुरक्षित हो जाएं और पश्चिम में भारतीयों के लिए घृणा फैल जाए। इसका सीधा नुकसान भारत के विदेशी व्यापार, उद्योग और विदेशों में भारतीयों को मिल रहे रोजगार पर पड़ता है।
राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा और वहां दिए गए बयान केवल उनके राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि यह कांग्रेस पार्टी की लंबे समय से चल रही उस रणनीति का प्रतीक हैं, जहां देश की आंतरिक राजनीति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एकतरफा और गलत ढंग से पेश करके राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की जाती है। राहुल गांधी का यह कदम न केवल कांग्रेस की राजनीति को उजागर करता है, बल्कि उनके द्वारा दिए गए बयानों की विश्वसनीयता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
1. लोकतंत्र पर सवाल – तथ्य और वास्तविकता
राहुल गांधी ने अपने भाषण में बार-बार इस बात पर जोर दिया कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है। यह एक गंभीर आरोप है, लेकिन क्या यह तथ्यों पर आधारित है? भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, ने 2014 और 2019 में शानदार चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से भाजपा को भारी बहुमत से चुना। दोनों चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी थे, जिसे दुनिया भर के चुनाव पर्यवेक्षकों ने भी सराहा।
अगर भारत में लोकतंत्र वाकई खतरे में होता, तो क्या विपक्षी दलों को राज्य स्तर पर जीतने का मौका मिलता? पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल, दिल्ली, केरल, और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भाजपा को सत्ता नहीं मिली, बल्कि विपक्षी दलों ने जीत हासिल की। यही तथ्य इस दावे को झूठा साबित करते हैं कि भारत में लोकतंत्र पर कोई खतरा मंडरा रहा है। Election Commission of India और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा चुनावी प्रक्रियाओं की वैधता और पारदर्शिता की लगातार पुष्टि की गई है, और इसके बावजूद राहुल गांधी का इस प्रकार का बयान देना भारतीय लोकतंत्र की उपेक्षा करना है।
2. भारतीय अर्थव्यवस्था पर भ्रामक दावे
राहुल गांधी का यह दावा कि भारतीय अर्थव्यवस्था गिरावट में है, वास्तविकता से कोसों दूर है। IMF और World Bank की रिपोर्ट के अनुसार, भारत इस समय दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। 2023-24 में भारत की GDP विकास दर 6% से अधिक रहने का अनुमान है, जो भारत को वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण आर्थिक शक्ति बनाता है।
राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि भारत में रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि Skill India और Make in India जैसी योजनाओं ने लाखों रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। 2022 में PLI (Production Linked Incentive) स्कीम के तहत ही इलेक्ट्रॉनिक्स और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ है, जिससे रोजगार के नए अवसर बने हैं। Apple जैसी कंपनियों ने भारत में अपने बड़े प्लांट्स स्थापित किए हैं, जो विदेशी निवेश और रोजगार दोनों में वृद्धि का संकेत है।
3. न्यायपालिका और संस्थाओं पर उठाए गए सवाल
राहुल गांधी ने अमेरिका में दिए गए भाषण में भारतीय न्यायपालिका और मीडिया की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाए। यह आरोप भी उतने ही निराधार हैं जितने उनके अन्य दावे। Supreme Court of India का स्वतंत्र और निष्पक्ष रवैया कई मामलों में देखा गया है, जहां सरकार के खिलाफ महत्वपूर्ण फैसले दिए गए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र है।
मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर उनके आरोप भी तर्कहीन हैं। भारत की मीडिया दुनिया की सबसे विविध और सक्रिय मीडिया में से एक है। हर दिन हजारों समाचार चैनल और अखबार बिना किसी बाधा के सरकार की आलोचना कर रहे हैं। 2023 के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत ने उल्लेखनीय सुधार किया है। राहुल गांधी का यह दावा कि मीडिया स्वतंत्र नहीं है, केवल उनके राजनैतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास है।
4. विदेशी मंच पर भारत की छवि को नुकसान
राहुल गांधी का सबसे गंभीर कदम यह है कि वे विदेशी धरती पर अपने ही देश की आलोचना कर रहे हैं। यह किसी भी जिम्मेदार नेता का कर्तव्य होता है कि वह अपने देश के आंतरिक मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने से बचे, क्योंकि इससे न केवल भारत की छवि धूमिल होती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो वे हमेशा देश की सकारात्मक छवि प्रस्तुत करते हैं, चाहे वह आर्थिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक मुद्दे हों। मोदी सरकार ने ग्लोबल साउथ को मंच दिया, जहां भारत एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभरा है। 2023 में G20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करना और वैश्विक मुद्दों पर भारत की नेतृत्व क्षमता का बढ़ना, यह सब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की साख को मजबूत करता है। इसके विपरीत, राहुल गांधी का विदेश में भारत की आलोचना करना केवल व्यक्तिगत राजनीतिक लाभ के लिए है, जो एक गंभीर राष्ट्रीय नुकसान है।
5. राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति को समझिए
यह स्पष्ट है कि राहुल गांधी की राजनीति का उद्देश्य अब सिर्फ मोदी सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत धारणाएं फैलाना है। यह उनकी चुनावी रणनीति का हिस्सा है, जहां वे देश की आंतरिक समस्याओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं और उन्हें विदेशी मंचों पर भारत के खिलाफ मोड़ रहे हैं। लेकिन यह रणनीति उल्टी भी पड़ सकती है, क्योंकि जनता अब जागरूक है और उसे समझ में आ रहा है कि राहुल गांधी की ये चालें केवल उनके राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की कोशिश हैं।
राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा और उनके वहां दिए गए बयान इस बात का सबूत हैं कि कांग्रेस पार्टी अभी भी सत्ता के लिए विदेशी मदद और समर्थन की उम्मीद कर रही है। लेकिन जब भारत की जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय सच को जानता है, तो राहुल गांधी के झूठे और भ्रामक बयानों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। राहुल गांधी को यह समझना होगा कि राजनीतिक लाभ उठाने के लिए देश की छवि को दांव पर लगाना एक गंभीर भूल है, जो न केवल उनकी राजनीतिक छवि को नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि भारत के गौरवमयी लोकतंत्र और विकास की गाथा को भी प्रभावित करने का प्रयास करेगी।
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