जमाना बदल गया है
मेरा पहला कंप्यूटर...
By: lalit Sharma
1977 में एक फिल्म आई थी "त्रिशूल" अमिताभ शशि कपूर वाली. इस फिल्म के एक दृश्य में शशि कपूर जब विलायत से लौटते हैं तब राखी को बात बात में एक शब्द "कंप्यूटर" बोलते हैं. उस वक्त सिनेमा हॉल में बैठे अधिकांश लोगों को भी नहीं मालूम था की यह क्या है?
निर्देशक भी इस बात को समझते थे, सो उन्होंने आम जनमानस का यह सवाल राखी से ही पुछवा दिया की "यह क्या कंप्यूटर कंप्यूटर लगा रखा है" तब शशि कपूर ने इसका खुलासा किया की विलायत में एक ऐसी मशीन है जो दसिओं लोगों का काम पलक झपकते कर देती है....
मेरा भी इस शब्द से पहला तालुक हुआ था इसी फिल्म के माध्यम से. फिर समय बीता और धीरे धीरे कंप्यूटर शब्द अखबारों में समाचारों में आने लगा. 1982 में दिल्ली में रेलवे रिजर्वेशन कंप्यूटर द्वारा होने लगी. और मैंने पहली बार कंप्यूटर के दर्शन किया 1984 में जब नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर टिकेट बुक करवाने गया. उस दिन ऐसा महसूस हुआ और गर्व किया की "लो जी अब हम भी कंप्यूटर वाले हो गए" हम भी नए जमाने में प्रवेश कर गए.
इसके बाद 1985 में मैं अपने कारोबार से जुड़ा, जिसमे कभी कभी डिजाइनिंग की आवश्यकता होती थी। तब पहली बार एक कंप्यूटर ग्राफ़िक वाले को तलाशा और उससे डिजाईन बनवाया. उस दिन तो पिताजी भी सीना फुलाए थे की आज बेटा तरक्की कर गया, कारोबार को कंप्यूटर वाला बना दिया।
अभी तक सिर्फ कंप्यूटर देखा ही था, हाथ लगाने को नहीं मिला था. कुछ फ्लॉपी खरीद लीं थीं जिनमे फाइल्स ले जाते थे. फ्लॉपी को यूँ रखते थे मानो कोई गहना ही हो. फ्लॉपी की स्टोरेज कैपेसिटी 2MB हुआ करती थी.
अब इसके बाद 1989 में एक मित्र ने करिश्मा किया और एक कंप्यूटर खरीद लाया. हम बाकायदा देखने गए उसके घर की क्या लाया है भाई. उसने बताया की उसका कंप्यूटर एकदम लेटेस्ट है और इसकी स्टोरेज 2GB है...मेरे ऊपर से निकल गयी बात की अब यह GB क्या है. उसने बताया की 1000MB का एक GB होता है. मैंने हिसाब लगाया की इसका कंप्यूटर तो 1000 फ्लॉपी स्पेस लिए हुए है. हम तो कंप्यूटर के और अपने दोस्त के फेन हो गए।
अब लगातार कंप्यूटर से काम होने लगे, सभी डिजाईन कंप्यूटर से बनने लगे तो एक समय आया की हमें भी लगने लगा की हमें भी अब लेना होगा, किन्तु ले भी लिया तो चलाएगा कौन? बहरहाल इसके बिना काम में दिक्कत आने लगी सो 1999 में हमने भी Rs.55000 का एक कंप्यूटर ले लिया।
अब वह दिन और आज का दिन...कंप्यूटर दिनचर्या का हिस्सा है. इसके बिना अधूरा है सब. अब 2GB नहीं 4TB स्पेस भी कम है. आजकल 1989 के मित्र के कंप्यूटर से 100 गुना स्पेस वाले तो मोबाइल जेब में लिए चलते हैं हम लोग।
बहरहाल आज शशि कपूर, उस रेलवे बुकिंग क्लर्क, उस मित्र जिसने पहली बार कंप्यूटर को हाथ लगवाया और बाद में उन सभी जिन्होंने मुझे सहायता की कंप्यूटर को जानने में, को धन्यवाद करता हूँ.
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