सीताराम येचुरी: वामपंथ की मशाल थामे एक सादगी भरा जीवन
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By: Yogesh kumar Gulati
भारतीय राजनीति में वामपंथ की जब भी बात होती है, तो एक नाम हमेशा प्रमुखता से उभरता है — सीताराम येचुरी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [CPI(M)] के इस जुझारू नेता ने न केवल पार्टी के भीतर बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी। हाल ही में उनका निधन भारतीय राजनीति के एक अध्याय का अंत है, लेकिन उनके जीवन और संघर्ष की कहानी आज भी प्रेरणादायक है। आइए, जानते हैं इस विचारशील और प्रभावी नेता की यात्रा के बारे में।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: संघर्ष की नींव
सीताराम येचुरी का जन्म 12 अगस्त 1952 को चेन्नई में हुआ, लेकिन उनका पालन-पोषण दिल्ली में हुआ। उनके पिता भारतीय रेलवे में अधिकारी थे, और इस पृष्ठभूमि ने उन्हें एक सादगी भरा जीवन जीने की शिक्षा दी। शुरुआती शिक्षा के बाद, येचुरी ने दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। बाद में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने एम.ए. और एम.फिल. की डिग्री हासिल की। यहीं से उनके जीवन में राजनीति की धारा का प्रवेश हुआ।
जेएनयू के दिनों में छात्र संघ के अध्यक्ष बनने के साथ ही येचुरी की विचारधारा वामपंथ की ओर मुड़ गई। उनका नेतृत्व कौशल उन्हें CPI(M) की ओर खींच लाया, और यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की औपचारिक शुरुआत हुई।
आपातकाल और जेल यात्रा: एक निर्णायक मोड़
1975 में आपातकाल के दौरान सीताराम येचुरी को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इस घटना ने उनके जीवन की दिशा को और स्पष्ट कर दिया। जेल में बिताए गए समय ने उनकी विचारधारा को और अधिक मजबूती दी, और वे पूरी तरह से कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रति समर्पित हो गए। 1978 में CPI(M) की केंद्रीय समिति के सदस्य बने और इसके बाद पार्टी में कई प्रमुख पदों पर आसीन रहे।
महासचिव के रूप में नेतृत्व
2015 में, सीताराम येचुरी को CPI(M) का महासचिव चुना गया। उनके नेतृत्व में पार्टी ने कई अहम निर्णय लिए, और उन्होंने देश की वामपंथी राजनीति को एक नया दृष्टिकोण देने का प्रयास किया। उन्होंने समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए हमेशा संघर्ष किया, चाहे वह किसानों के मुद्दे हों या श्रमिकों के अधिकार। उनकी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के घटते जनाधार को संभालने की थी, लेकिन उन्होंने अपने धैर्य और नेतृत्व से वामपंथी विचारधारा को प्रासंगिक बनाए रखा।
भारतीय राजनीति में योगदान: सिद्धांतों पर आधारित संघर्ष
सीताराम येचुरी भारतीय राजनीति में एक विचारशील और दृढ़ नेता के रूप में जाने जाते थे। वे दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे और संसद में उनके भाषणों को बड़े ध्यान से सुना जाता था। उनके तर्क हमेशा शोध पर आधारित होते थे, और वे अपने विरोधियों के साथ भी तार्किक बहस के लिए जाने जाते थे।
वे हमेशा राष्ट्रीय मुद्दों पर मुखर रहे, विशेषकर सांप्रदायिकता, आर्थिक असमानता, और सामाजिक न्याय के सवालों पर। धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें वामपंथी राजनीति का एक प्रमुख चेहरा बनाए रखा।
अन्य दलों के नेताओं के साथ संबंध: विचारधारा से परे व्यक्तिगत मित्रता
येचुरी का भारतीय राजनीति के कई नेताओं से मजबूत व्यक्तिगत संबंध था। दिलचस्प बात यह थी कि उनका दोस्ताना संबंध बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली से भी था, जो छात्र राजनीति के दिनों से चला आ रहा था। दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था, लेकिन विचारधाराओं के अंतर के बावजूद उनकी मित्रता बरकरार रही।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं, विशेष रूप से मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से भी उनके मधुर संबंध रहे। CPI(M) और कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधनों के दौरान वे अक्सर बातचीत के प्रमुख सूत्रधार होते थे।
व्यक्तिगत जीवन और दिलचस्प तथ्य: साहित्य प्रेमी नेता
येचुरी का जीवन न केवल राजनीति बल्कि साहित्य और संस्कृति से भी जुड़ा हुआ था। वे कविता के शौकीन थे और अक्सर अपने भाषणों में कविताओं का जिक्र करते थे। उनकी पत्नी सीमा चिस्ती एक जानी-मानी पत्रकार हैं, और उनका परिवार हमेशा से उनके लिए सबसे बड़ी ताकत रहा। उनका जीवन सादगी और अनुशासन का प्रतीक रहा है, जो आज के राजनीति के बदलते परिवेश में दुर्लभ है।
हालिया घटनाएँ: एक युग का अंत
सीताराम येचुरी का निधन भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति है। उनका जाना केवल एक नेता का जाना नहीं है, बल्कि वह विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते थे जो भारतीय राजनीति में वामपंथी धारा को जीवित रखे हुए थी। उनके निधन के साथ ही भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण युग का अंत हो गया है।
एक विचारशील नेता की विरासत
सीताराम येचुरी का जीवन और योगदान भारतीय राजनीति के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। वे न केवल एक सिद्धांतवादी नेता थे, बल्कि उन्होंने अपने जीवन को समाज के कमजोर और गरीब वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित किया। उनका संघर्ष और नेतृत्व आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी राजनीति न केवल विचारधारा बल्कि नैतिकता और सिद्धांतों पर आधारित थी, और यही कारण है कि वे अपने विरोधियों के बीच भी सम्मानित थे।
उनकी मृत्यु के साथ, भारतीय राजनीति ने एक ऐसा नेता खो दिया है जो अपने विचारों पर अडिग रहते हुए भी सभी के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए रखने में विश्वास करता था। सीताराम येचुरी की विरासत आने वाले समय में वामपंथी राजनीति और भारतीय राजनीति पर गहरी छाप छोड़ती रहेगी।
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