भारत के चुनावी तंत्र में सोशल मीडिया की भूमिका

भारत के चुनावी तंत्र में सोशल मीडिया की भूमिका

भारत में लोकतंत्र का आधार चुनाव है, और जब बात चुनाव की होती है, तो एक नई क्रांति की शुरुआत हुई है - सोशल मीडिया के माध्यम से। एक समय था जब चुनावी प्रचार पोस्टर, रैलियों और टेलीविजन विज्ञापनों तक सीमित था, लेकिन आज के दौर में फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने इस प्रक्रिया को पूरी तरह बदल दिया है। आज हर राजनीतिक दल और नेता अपने प्रचार के लिए इन डिजिटल साधनों पर निर्भर हैं। सवाल यह है कि सोशल मीडिया ने चुनावी तंत्र को कितना प्रभावित किया है और किस तरह से?

सोशल मीडिया का असली जोर 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान देखा गया। यह वह समय था जब नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने सोशल मीडिया के माध्यम से बड़े पैमाने पर प्रचार किया। इंटरनेट और सस्ते डेटा प्लान्स की उपलब्धता ने सोशल मीडिया को आम आदमी तक पहुंचा दिया। 2019 के चुनाव तक आते-आते, सोशल मीडिया का उपयोग हर राजनीतिक दल की रणनीति का अहम हिस्सा बन गया।

2019 के चुनाव में लगभग 40 करोड़ भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे, जिनमें से अधिकतर सोशल मीडिया पर सक्रिय थे। आंकड़ों के मुताबिक, चुनावी चर्चा में शामिल करीब 20 करोड़ लोग सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव से संबंधित जानकारी हासिल कर रहे थे। इसने राजनीति और चुनाव प्रचार के परंपरागत तरीकों को पूरी तरह से बदल दिया।

सोशल मीडिया ने चुनाव प्रचार का चेहरा बदल दिया है। अब नेताओं की बड़ी-बड़ी रैलियों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर उनके बयान, वीडियो और घोषणाएं एक क्लिक में करोड़ों लोगों तक पहुंच जाती हैं। उदाहरण के लिए, 2014 के चुनाव में ‘चाय पर चर्चा’ अभियान न सिर्फ मैदान में बल्कि ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर भी वायरल हुआ था।

1. वायरल अभियान की ताकत

सोशल मीडिया पर चुनावी अभियानों का वायरल होना अब कोई नई बात नहीं है। 2019 में #MainBhiChowkidar अभियान ट्विटर और फेसबुक पर इतना लोकप्रिय हुआ कि इसने बीजेपी के लिए एक बड़ा जनसमर्थन खड़ा किया। इसी तरह, राहुल गांधी की 'NYAY' योजना पर भी सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हुई। ट्विटर ने बताया कि 2019 के चुनावों के दौरान 45 मिलियन से ज्यादा चुनावी ट्वीट्स किए गए थे।

2. डिजिटल विज्ञापन और डेटा एनालिटिक्स

सोशल मीडिया पर प्रचार अब सिर्फ एक पोस्ट या वीडियो तक सीमित नहीं है। राजनैतिक दल फेसबुक और गूगल जैसे प्लेटफार्मों पर टार्गेटेड विज्ञापन चला रहे हैं, जो खास समूहों और मतदाताओं को ध्यान में रखकर डिजाइन किए जाते हैं। 2019 के चुनाव में बीजेपी ने सोशल मीडिया विज्ञापनों पर करीब 27 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जबकि कांग्रेस ने करीब 4 करोड़ रुपये खर्च किए। इन विज्ञापनों के माध्यम से मतदाताओं की पसंद और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रचार सामग्री तैयार की गई थी।

3. मतदाताओं पर सोशल मीडिया का प्रभाव

सोशल मीडिया ने मतदाताओं के सोचने और चुनावी मुद्दों को समझने के तरीके को भी बदल दिया है। जहां एक ओर पारंपरिक मीडिया सीमित जानकारी देता था, वहीं सोशल मीडिया पर हर मुद्दे पर खुली चर्चा होती है। मतदाता अब उम्मीदवारों की नीतियों, उनके पुराने बयानों और उनकी छवि के बारे में तुरंत जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।

सोशल मीडिया ने खासकर युवाओं को चुनाव प्रक्रिया से जोड़ने का काम किया है। आंकड़ों के अनुसार, 2019 में सोशल मीडिया के जरिए 20 करोड़ से ज्यादा मतदाता चुनावी प्रक्रिया से जुड़े थे, और इसमें ज्यादातर युवा शामिल थे।

4. फेक न्यूज और सोशल मीडिया का खतरा

हालांकि सोशल मीडिया ने चुनाव प्रक्रिया को सशक्त किया है, लेकिन इसका एक नकारात्मक पहलू भी है - फेक न्यूज और दुष्प्रचार। 2019 के चुनावों में फेसबुक ने 1 मिलियन से ज्यादा फेक अकाउंट्स को हटाया था, जिनका इस्तेमाल फर्जी खबरें फैलाने के लिए किया जा रहा था। व्हाट्सएप पर गलत जानकारी तेजी से फैलने के कई मामले सामने आए, जिसने मतदाताओं को भ्रमित किया।

सोशल मीडिया का यह नकारात्मक पक्ष चुनाव प्रक्रिया की शुचिता को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और चुनाव आयोग के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है, ताकि फेक न्यूज और गलत जानकारियों को फैलने से रोका जा सके।

5. सामाजिक ध्रुवीकरण और सोशल मीडिया

सोशल मीडिया के माध्यम से चुनावों के दौरान कभी-कभी ध्रुवीकरण भी देखा गया है। राजनैतिक दल जातिगत, धार्मिक और क्षेत्रीय मुद्दों का उपयोग करके मतदाताओं को बांटने की कोशिश करते हैं। यह एक नई चुनौती है, क्योंकि इससे समाज में विभाजन की स्थिति पैदा हो सकती है।

भारत के चुनावी तंत्र में सोशल मीडिया ने एक नई क्रांति ला दी है। यह न केवल प्रचार का साधन बना है, बल्कि मतदाताओं को जागरूक करने और उनकी राय को प्रभावित करने का सबसे शक्तिशाली माध्यम भी बन चुका है। हालांकि, इसका विवेकपूर्ण उपयोग और फेक न्यूज पर नियंत्रण भारतीय लोकतंत्र की स्थिरता के लिए आवश्यक है। यदि सही तरीके से इसका इस्तेमाल किया जाए, तो यह भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बना सकता है, लेकिन यदि इसका दुरुपयोग किया गया, तो यह चुनावी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकता है।

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