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कहानी: "परछाइयों के बीच पराए" Part - 1

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कहानी: "परछाइयों के बीच पराए" Part - 1 वर्ष 2035 का एक शांत दिन था, लेकिन यह शांति केवल सतह पर थी। धरती पर, जहां इंसान अपने जीवन की आपाधापी में व्यस्त थे, वहीं अंतरिक्ष की गहराइयों में कुछ बड़ा घटित हो रहा था। नासा के प्रमुख अंतरिक्ष यात्री कैप्टन रोहन मलिक के जीवन में वह दिन सामान्य नहीं था। रोहन, जो पहले ही कई अंतरिक्ष अभियानों का नेतृत्व कर चुका था, एक नई चुनौती का सामना करने वाला था - एक ऐसा रहस्य जो न केवल पृथ्वी को बल्कि पूरी मानवता के अस्तित्व को हिला देने वाला था। रोहन को नासा के गुप्त ऑपरेशन सेंटर से बुलावा आया। वहां की गंभीरता और तनाव ने उसे महसूस करा दिया कि कुछ बेहद असाधारण होने वाला है। नासा के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रेबेका विल्सन ने उसे बताया, "रोहन, हमें एक अजीब सिग्नल मिला है, और यह सिग्नल कहीं बाहरी अंतरिक्ष से नहीं, बल्कि पृथ्वी के भीतर से आ रहा है।" रोहन ने हैरानी से पूछा, "पृथ्वी के भीतर से? क्या यह कोई गलती है?" डॉ. रेबेका ने गंभीर आवाज में कहा, "नहीं, यह सिग्नल स्पष्ट है। यह सिग्नल इतनी उच्च फ्रिक्वेंसी पर है कि इसे इंसान के बनाए क...

भारत से दूर ब्राजील में क्यों लोकप्रिय हो रहा हिंदुत्व?

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ब्राजील में हिंदू धर्म का बढ़ता प्रभाव क्या कहता है?  एक तरफ जहां भारत में हिंदू धर्म और हिंदुत्व को लगातार विरोध का सामना करना पड़ता है तो वहीं सुदूर दक्षिण अमरीका के एक देश में हिंदुत्व का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इस कैथोलिक ईसाई देश में लोग खुलकर हिंदू धर्म को ना केवल अपना रहे हैं बल्कि वो हिंदू मंदिरों की स्थापना कर गणेश पूजा, जन्माष्टमी और दीपावली जैसे सनातनी त्यौहार भी माना रहे हैं।  ब्राजील, दक्षिण अमेरिका का सबसे बड़ा देश, अपनी विविधता, जीवंत संस्कृति और धार्मिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। ईसाई धर्म के प्रमुख प्रभाव के बावजूद, हाल के वर्षों में हिंदू धर्म ने यहां एक विशेष स्थान बनाना शुरू किया है। ब्राजीलियाई समाज, जो हमेशा नई सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धाराओं के प्रति खुला रहा है, आज योग, ध्यान और वेदांत जैसे हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पहलुओं की ओर बढ़ती दिलचस्पी दिखा रहा है। 1. योग और ध्यान की लोकप्रियता बढ़ रही है। ब्राजील में योग और ध्यान का प्रभावी रूप से प्रसार हो रहा है। योग, जो हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है, न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए अपन...

ड्रेगन पर भारी मोदी नीति, चालाक चीन ने कदम पीछे क्यों किए?

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By: Yogesh kumar Gulati  चालाक चीन ने कदम पीछे क्यों किए? दुनिया की सबसे लंबी और सबसे विवादित सीमाओं में से एक, भारत-चीन सीमा पर हाल ही में एक दिलचस्प मोड़ आया है। जिस चीन ने लद्दाख की गलवान घाटी में आक्रामकता दिखाई थी, वही अब पीछे हटता दिख रहा है। यह कोई अचानक चमत्कार नहीं है, बल्कि एक गहन रणनीतिक खेल का हिस्सा है, जिसमें भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल की पुतिन से मुलाकात और भारत की कूटनीतिक महारत का हाथ है। पुतिन और डोभाल: भू-राजनीति की गुप्त रणनीति अजीत डोभाल का रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलना केवल औपचारिकता नहीं थी। यह बैठक एक कूटनीतिक चाल थी, जो चीन के खिलाफ भारत के रणनीतिक कदमों को और मजबूत करने के लिए थी। रूस इस समय पश्चिमी प्रतिबंधों से घिरा हुआ है और चीन के साथ उसके संबंधों की मजबूती के बावजूद, भारत के साथ उसकी गहरी मित्रता ने उसे एक निर्णायक भूमिका में ला खड़ा किया है। डोभाल ने पुतिन के साथ मिलकर एक ऐसा माहौल बनाया जहां चीन पर सीमा विवाद सुलझाने का दबाव बढ़ गया। इससे चीन के पास पीछे हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। चीन का रुख: क्या दबाव मे...

केजरीवाल का इस्तीफा कहीं उंगली कटवाकर शहीद दिखने की कोशिश तो नहीं है?

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By: Yogesh Kumar Gulati  नजरिया : एक कट्टर ईमानदार की अग्नि परीक्षा या कट्टर राजनीतिक चाल? केजरीवाल की राजनीति: इस्तीफे का रहस्य और असल मंशा पर एक नज़र। अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति में एक ऐसे नेता के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से शुरुआत की, लेकिन धीरे-धीरे उनकी राजनीति ने कई सवाल खड़े किए हैं। हाल ही में, दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा ने एक बार फिर से राजनीति के गलियारों में हलचल मचा दी है। सवाल यह है कि चुनाव से ठीक पहले इस इस्तीफे के पीछे आखिर केजरीवाल की मंशा क्या है? क्या यह सिर्फ जनता की सहानुभूति पाने की कोशिश है या फिर कोई गहरी राजनीतिक चाल? चलिए समझते हैं अरविंद केजरीवाल के इस त्याग के पीछे की कहानी। 1. केजरीवाल की इस्तीफे की टाइमिंग: एक सोची-समझी चाल? अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा ऐसे वक्त पर आया है जब दिल्ली चुनाव नजदीक हैं। यह समझना जरूरी है कि इससे पहले उन्होंने न शराब घोटाले के आरोपों के समय इस्तीफा दिया, न जब वे जेल गए। अब जब चुनाव कुछ ही महीनों में हैं, केजरीवाल अचानक से इस्तीफे की घोषणा करते हैं और "जनता की अदालत" में ज...

शीला दीक्षित के बाद आतिशी....

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क्या आतिशी बनेंगी दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री ! By: Yogesh kumar Gulati   केजरीवाल ने इस्तीफे के लिए दो दिन का समय क्यों मांगा है? आखिर केजरीवाल को दो दिन क्यों चाहिए? दरअसल, जेल से बाहर आने के बाद केजरीवाल ने बड़ा निर्णय लिया है। ये निर्णय वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य और चुनावों के मद्देनजर लिया गया है। इस राजनीति के नफे नुकसान का हिसाब कर लिया गया है। लेकिन अभी केजरीवाल ये तय नहीं कर पाए हैं कि उनके बाद दिल्ली का ताज किसके सर सजेगा? इस वक्त दो नाम सीएम की रेस में सबसे आगे चल रहे हैं और अगला सीएम इन दोनों में से ही कोई एक हो सकता है।  अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की संभावना के बाद दिल्ली में नए मुख्यमंत्री की दौड़ शुरू हो चुकी है। इस दौड़ में दो प्रमुख नाम सामने आ रहे हैं - आतिशी और कैलाश गहलोत। दोनों ही आम आदमी पार्टी (AAP) के कद्दावर नेता हैं और केजरीवाल सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। आइए, इन दोनों नेताओं के राजनीतिक सफर और योग्यता का विश्लेषण करते हैं ताकि यह समझा जा सके कि किसके पास दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री बनने की अधिक संभावनाएं हैं। आतिशी: शिक्षा की क्रां...

अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा: मास्टर स्ट्रोक या मजबूरी?

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AAP की अग्निपरीक्षा का वक्त अब शुरू हो गया है। By: Yogesh kumar Gulati  अरविंद केजरीवाल, भारतीय राजनीति के सबसे चतुर और रणनीतिक नेताओं में से एक माने जाते हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक कौशल ने उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में तीन बार सत्ता में आने में मदद की है। लेकिन हाल ही में उनके इस्तीफे की खबर ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। सवाल यह है कि क्या यह इस्तीफा एक मास्टर स्ट्रोक है या फिर एक राजनीतिक मजबूरी? इसके फायदे और नुकसान क्या हैं, और इसका हरियाणा चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? आइए इस पूरे प्रकरण का विश्लेषण करें। इस्तीफा: मास्टर स्ट्रोक या मजबूरी? दरअसल, केजरीवाल का इस्तीफा इस वक्त मजबूरी से उपजा एक मास्टर स्ट्रोक है। बीजेपी ने जब केजरीवाल को चारों तरफ से घेर लिया और कोर्ट ने भी उनके हाथ बांध दिए तो उनके पास एक ही चाल शेष थी जो उन्होंने चल दी। केजरीवाल ने बहुत बड़ा दांव खेला है उनके पास अब खोने को कुछ शेष नहीं है, इसलिए वो यहां से बाउंस बैक भी कर सकते हैं जो बीजेपी के लिए ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकता है। इस्तीफे के बाद जनता की सहानुभूति मिलना तय ...

आपके इस्तीफे में ही समझदारी है, केजरीवाल जी!

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अरविंद केजरीवाल को सशर्त जमानत – क्या दिल्ली की राजनीति का भविष्य खतरे में है? By: Yogesh kumar Gulati  अरविंद केजरीवाल, जो कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का प्रतीक माने जाते थे, आज खुद भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें सशर्त जमानत मिलना, इस बात का संकेत है कि उनके खिलाफ लगे आरोप गंभीर और जांच योग्य हैं। यह जमानत किसी राजनीतिक जीत का प्रमाण नहीं है, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जो अपने अंजाम तक पहुंचने में देर नहीं करेगी । केजरीवाल को मिले इस जमानत के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या वे मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार रखते हैं? 2015 में दिल्ली की जनता ने उन्हें एक ईमानदार नेता मानकर भारी बहुमत से सत्ता सौंपी थी, लेकिन अब उनके नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। शराब घोटाले जैसे मामलों ने उनकी पार्टी के भ्रष्टाचार-विरोधी दावों को खोखला साबित कर दिया है। क्या जनता से विश्वासघात हुआ है? आज केजरीवाल का यह हाल उन नेताओं की तरह हो गया है जो जनता से किए गए वादों से पीछे हट चुके हैं। जिन वादों के दम पर उन्होंने दिल्ली की जनता का ...

2008 वाली मंदी की तरफ बढ़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था

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क्या अमरीका में आर्थिक संकट की आंधी में उड़ जाएगी बाइडेन सरकार?  डोनाल्ड ट्रंप के लिए क्यों है ये आपदा में अवसर?  अमेरिका में आर्थिक संकट का भारत पर क्या होगा असर होगा? 2024 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहां कई बड़ी कंपनियाँ दिवालिया घोषित हो चुकी हैं। यह संकट अमेरिकी राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, किन गलतियों ने इस स्थिति को पैदा किया, और इसके क्या परिणाम होंगे, खासकर भारत और वैश्विक रोजगार बाजार पर। अमेरिका में आर्थिक संकट: क्या हो रहा है? 2024 में अमेरिका की अर्थव्यवस्था गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। बड़ी संख्या में कंपनियाँ जैसे कि Bed Bath & Beyond, Vice Media और Yellow Corp. दिवालिया हो गई हैं। इससे न केवल इन कंपनियों के कर्मचारियों को नुकसान हुआ, बल्कि निवेशकों का विश्वास भी डगमगा गया है। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में की गई बढ़ोतरी से कर्ज महंगा हो गया है, जिससे कंपनियों के लिए वित्तपोषण और विस्तार करना कठिन हो गया है। उदाहरण के लिए, 2022 में दिवालिया कंपनियों की संख्या 2008 के बा...

कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे की विवादास्पद टिप्पणी:

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By: Yogesh kumar Gulati  क्या ये भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा है? हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे के एक बयान ने राजनीतिक जगत में खलबली मचा दी है। कश्मीर चुनाव के संदर्भ में खड़गे ने कहा कि अगर कांग्रेस को 20 सीटें और मिल जातीं, तो वर्तमान सत्ता में बैठे सभी लोग जेल में होते। यह बयान न केवल विवादास्पद है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के प्रति कांग्रेस की निष्ठा पर भी सवाल उठाता है। आइए, इस विवाद की गहराई में जाएं और इस पर एक सटीक विश्लेषण प्रस्तुत करें। बयान का ब्योरा खड़गे का यह बयान कश्मीर चुनावों के दौरान आया, जहां उन्होंने कांग्रेस की संभावित जीत और वर्तमान सरकार की असफलताओं पर टिप्पणी की। खड़गे ने दावे के साथ कहा कि कांग्रेस की सत्ता में आने की स्थिति में मौजूदा सरकार के नेताओं को जेल भेजा जा सकता है। इस टिप्पणी ने न केवल सत्ता पक्ष बल्कि विपक्ष में भी हलचल पैदा की है। विवाद की जड़ खड़गे के इस बयान ने कई सवाल उठाए हैं: प्रमाण और सबूत: खड़गे ने यह दावा किया कि मौजूदा सरकार के नेता जेल में होंगे, लेकिन उन्होंने इसके समर्थन में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया। यदि सरकार ने कोई अपर...

सीताराम येचुरी: वामपंथ की मशाल थामे एक सादगी भरा जीवन

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और अब एक युग का अंत...l By: Yogesh kumar Gulati  भारतीय राजनीति में वामपंथ की जब भी बात होती है, तो एक नाम हमेशा प्रमुखता से उभरता है — सीताराम येचुरी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [CPI(M)] के इस जुझारू नेता ने न केवल पार्टी के भीतर बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी। हाल ही में उनका निधन भारतीय राजनीति के एक अध्याय का अंत है, लेकिन उनके जीवन और संघर्ष की कहानी आज भी प्रेरणादायक है। आइए, जानते हैं इस विचारशील और प्रभावी नेता की यात्रा के बारे में। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: संघर्ष की नींव सीताराम येचुरी का जन्म 12 अगस्त 1952 को चेन्नई में हुआ, लेकिन उनका पालन-पोषण दिल्ली में हुआ। उनके पिता भारतीय रेलवे में अधिकारी थे, और इस पृष्ठभूमि ने उन्हें एक सादगी भरा जीवन जीने की शिक्षा दी। शुरुआती शिक्षा के बाद, येचुरी ने दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। बाद में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने एम.ए. और एम.फिल. की डिग्री हासिल की। यहीं से उनके जीवन में राजनीति की धारा का...

मोहम्मद यूनुस ने ऐसे किया बांग्लादेश का 'बेड़ा गर्क'

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By: Yogesh kumar Gulati  एक नोबेल विजेता की विफलता का विश्लेषण समझिए। बांग्लादेश अब पूरी तरह कंगाली की राह पर बढ़ चला है। बांग्लादेश की जनता बोली, नायक नहीं खलनायक है तू। नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस, जिन्हें माइक्रोफाइनेंस की दुनिया में एक क्रांतिकारी माना जाता है, वर्तमान में बांग्लादेश के आर्थिक संकट में एक विवादित शख्सियत के रूप में उभर रहे हैं। एक समय में गरीबी उन्मूलन और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए विश्व भर में सम्मानित यूनुस अब बांग्लादेश की चरमराती अर्थव्यवस्था और राजनीतिक अस्थिरता के कारण कठघरे में खड़े हैं। आइए समझते हैं कि कैसे बांग्लादेश, जो कभी एक तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था मानी जाती थी, आज आर्थिक बर्बादी की ओर बढ़ रहा है और इस पूरे संकट में यूनुस की भूमिका क्या है। मोहम्मद यूनुस और उनकी प्रारंभिक सफलता 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले मोहम्मद यूनुस का माइक्रोफाइनेंस मॉडल, जिसे उन्होंने 'ग्रामीण बैंक' के रूप में स्थापित किया, गरीबों के लिए कर्ज उपलब्ध कराने का एक नया और सफल तरीका माना गया। इस मॉडल ने लाखों गरीब लोगों, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं, को सूक्...

विदेशी धरती पर राहुल की महाभारत का मकसद क्या?

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अमरीका में राहुल के बयानों से भारत में क्यों मचा संग्राम? By: Yogesh kumar Gulati  घर के मुद्दे अगर दूर के रिश्तेदार या किसी पड़ोसी को बताओगे तो इस बात की संभावना बहुत कम है कि वो आपके मुद्दे सुलझाएगा, बल्कि इस बात की संभावना कहीं अधिक है कि, वो आपके अंदरूनी राज जानकर अपने हित में उनका इस्तेमाल करेगा। उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर पेश करेगा और आपकी छबि को नुकसान पहुंचाएगा।लेकिन ये बात ना तो राहुल गांधी को समझ आती है, ना देश की सबसे वरिष्ठ कांग्रेस पार्टी को । यहां मै इस बात को सिरे से नहीं नकारूंगा कि भारत में किसी पर भी, और कहीं भी, कोई भी अन्याय नहीं हो रहा। सब कुछ ठीक है और अच्छा चल रहा है। नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है। आज भी वैसे ही अत्याचार हो रहे हैं जैसे 2014 से पहले हो रहे थे। बहस इस बात पर हो सकती है कि आज अत्याचार और अन्याय 2014 की तुलना में कम हुआ है या बढ़ा है। लेकिन इसपर कोई बहस नहीं हो सकती कि देश में अन्याय और अत्याचार पूरी तरह समाप्त हो गए हैं। आज भी दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं तो सवर्ण भी घृणा के शिकार बनाए जा रहे हैं। मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है तो गणपति उत्सव और दुर्ग...